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अनुभूति में डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
सात मुक्तक

अंजुमन में-
आस का रंग
कल का युग
कालिख जो कोई
चैन के पल
टूट जाने पर
पिघलकर पर्वतों से
मन कभी घर में रहा
हर नया मौसम

 

सात मुक्तक

एक

पेड़ हैं लचकेंगे फिर सीधे खड़े हो जाएँगे
नाचते गाते रहेंगे आँधियों के दरमियाँ
आपदाओं से कहाँ धूमिल हुई जीवन की जोत
फूल खिलते आ रहे हैं कंटकों के दरमियाँ


दो

हर दिशा से तीर बरसे घाव भी लगते रहे
ज़िंदगी भर दिल मेरा आघात से लड़ता रहा
दोस्त! कस-बल की नहीं यह हौसले की बात है
कितना छोटा था दिया पर रात से लड़ता रहा

तीन

यदि कभी अवसर मिले दोनों का अंतर सोचना
दर्द सहना वीरता है जुल्म सहना पाप है
स्वप्न में भी सावधानी शर्त है जीना जो हो
जागती आँखें लिए निंद्रा में रहना पाप है


चार

बिजलियाँ कैसे बनी हैं बादलों से पूछिए
है समंदर का पता क्या बारिशों से पूछिए
छेद कितने कर दिए हैं रात के आकार में
दीपकों की नन्ही-नन्ही उँगलियों से पूछिए

पाँच

आदमी कठिनाइयों में जी न ले तो बात है
ज़िंदगी हर घाव अपना सी न ले तो बात है
एक उँगली भर की बाती और पर्वत जैसी रात
सुबह तक यह कालिमा को पी न ले तो बात है

छह

नाम चाहा न कभी भूल के शोहरत माँगी
हमने हर हाल में ख़ुश रहने की आदत माँगी
हो न हिम्मत तो है बेकार यह दौलत ताक़त
हमने भगवान से माँगी है तो हिम्मत माँगी

सात

असल परछाईं भी क्या है उजाला सीख लेता है
ढलानों पर रुका दरिया फ़िसलना सीख लेता है
सुगंधित पत्र पाकर उसका मैं सोचा किया पहरों
मिले खुशबू तो कागज भी महकना सीख लेता है

२ अप्रैल २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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