अनुभूति में
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की
रचनाएँ -
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सात मुक्तक
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आस का रंग
कल का युग
कालिख जो कोई
चैन के पल
टूट जाने पर
पिघलकर पर्वतों से
मन कभी घर में रहा
हर नया मौसम
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पिघलकर पर्वतों से
पिघलकर पर्वतों से हमने ढल जाना नहीं सीखा
न सीखा बर्फ बनकर हमने गल जाना, नहीं सीखा
वो राही, तुम ही सोचो किस तरह पहुँचेगा मंज़िल पर
वो जिसने ठोकरें खाकर सँभल जाना नहीं सीखा
हमें आता नहीं है मोम के आकार का बनना
ज़रा-सी आँच में हमने पिघल जाना नहीं सीखा
बदलते हैं, मगर यह देखकर कितना बदलना है
हवाओं की तरह हमने बदल जाना नहीं सीखा
सफर में हर कदम हम काफिले के साथ हैं, हमने
सभी को छोडक़र आगे निकल जाना नहीं सीखा
३ अक्तूबर २०११
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