अनुभूति में
डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल की
रचनाएँ -
नई रचनाओं में-
सात मुक्तक
अंजुमन में-
आस का रंग
कल का युग
कालिख जो कोई
चैन के पल
टूट जाने पर
पिघलकर पर्वतों से
मन कभी घर में रहा
हर नया मौसम
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आस का रंग
आस का रंग निराशा से झलकते देखा
राख के ढेर में अंगार चमकते देखा
दाब पड़ती है तो झुक जाती है लोहे की सलाख़
क्या किसी ने कभी पत्थर को लचकते देखा
देखना यह है कि है किसमें करिश्मा कितना
हमने ज़ख़्मों को भी फूलों-सा महकते देखा
अपनी हद से कभी बाहर नहीं आया सागर
कितने दरियाओं को वर्षा में छलकते देखा
क्या अँधेरे ने उजाले को पछाड़ा है कभी
रात आई है तो तारों को चमकते देखा
३ अक्तूबर २०११
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