कौन सुने अब
कौन सुने अब किसकी बात
ज़ख्मी हैं सबके जज़्बात
रात में जब-जब चाँद दिखा
गुज़री यादों की बारात
तेरा साथ नहीं तो क्या
गम का लश्कर अपने साथ
सावन- भादों का मौसम
फिर भी आँखों से बरसात
महफ़िल में भी दिल तनहा
चाहत ने दी यह सौग़ात
पास कहीं है तू शायद
होंठों पर हैं फिर नग़मात
जिसने देखे ख़्वाब नए
बदले हैं उसके हालात
२८ अप्रैल २००८ |