अनुभूति में
अनिता मांडा की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
आप चाहे कहा नहीं करते
जख्म दिल के
दर्द की सूरत
बेटियाँ
सफर में हूँ
छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
सितारे रिश्ते इंसान
अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे |
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सफ़र में हूँ
सफ़र में हूँ कहाँ अब पाँव की जंजीर ले जाये
चलाचल दिल जहाँ भी ख़्वाब की ताबीर ले जाये
लुटा देना तू अपनी जान हिंदुस्तान के सैनिक
कि तेरे हाथ से कोई नहीं कश्मीर ले जाये
लगे पहरे मुहब्बत के परिंदों पर यहाँ कितने
नहीं मुमकिन कि राँझा कोई अपनी हीर ले जाये
बुजुर्गों का सदा रखना तू साया साथ में अपने
दुआ इनकी मिले जो दिल की सारी पीर ले जाये
नहीं जीने का हक़ देना जहाँ में ऐसे इन्सां को
हरण कर जो किसी अबला के तन से चीर ले जाये
१ दिसंबर २०१६
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