अनुभूति में
अनिता मांडा की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
सितारे रिश्ते इंसान
अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे
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लबों पर
आ गया
लबों पर आ गया आसाँ न था इज़हार करना भी
सिखाया है अदाओं ने हमें इक़रार करना भी
पिघलता है कभी तो आसमाँ का दिल यहाँ देखो
नहीं फ़ितरत हमारी झूठ को स्वीकार करना भी
जलाया ज़िस्म को मेरे, जली तेज़ाब से रूह भी
ख़ता मेरी बना है आज ये इन्कार करना भी
रखे रिश्ते तराज़ू पर, नफ़ा देखा हमेशा ही
बहुत महँगा पड़ा मुझको, किसी से प्यार करना भी
हवाओं में घुली है बू, दबाती साँस सीने में
करो भी बंद अब तुम लोग, यों तक़रार करना भी
१ फरवरी २०१६ |