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अनुभूति में अनिता मांडा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आजकल
एक इबादल
कितना सुकूँ
सभ्यताएँ
सितारे रिश्ते इंसान

अंजुमन में-
किश्ती निकाल दी
गला के हाड़ अपने
पंख की मौज
लबों पर आ गया
शाम जैसे

 

 

कितना सुकूँ

ख्वाबों की
गलियों में
घूम आना रोज-रोज
चेहरे देख लेना कई
जाने-पहचाने
कितना सुकूँ दे जाता है
जिनसे बिछड़े बरसों बरस हुए
वो अब भी
मिल जाते हैं
मन की गलियों में
फूलों की ख़ुश्बू से
समा जाते हैं
साँसों में
जिंदगी की ज़द्दोज़हद में
पल दो पल होते हैं
कितने अपने से।

१ अक्तूबर २०१६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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