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१५. २. २०१०

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गंध के हस्ताक्षर

  भेजता ऋतुराज
किसलय-पत्र पर
इंद्रधनुषी रंग वाले
गंध के हस्ताक्षर!

झूमते हैं खेत
वन-उपवन
हवा की ताल पर
थिरकते
बंसवारियों के अधर पर
फिर वेणु के स्वर

विवश होकर
पंचशर की छुअन से
लग रहे उन्मत्त
सारी सृष्टि के ही चराचर!

आज नख-शिख
फिर प्रकृति के
अंग मदिराने लगे,
और निष्ठुर
पत्थरों तक
सुमन मुस्काने लगे

पिघलता है पुनः
कण-कण का ह्रदय
हर कहीं पर अब चतुर्दिक
फागुनी मनुहार पर!

--शिवाकांत मिश्र 'विद्रोही'

इस सप्ताह वसंत विशेषांक में
वासंती रचनाओं के साथ

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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