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८. २. २०१०

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मैं शिखर पर हूँ

  घाटियों में खोजिए मत
मैं शिखर पर हूँ

धुएँ की
पगडंडियों को
बहुत पीछे छोड़ आया हूँ
रोशनी के राजपथ पर
गीत का रथ मोड़
आया हूँ
मैं नहीं भटका
रहा चलता निरंतर हूँ।

लाल-
पीली उठीं लपटें
लग रही है आग जंगल में
आरियाँ उगने लगी हैं
आम, बरगद, और
पीपल में
मैं झुलसती रेत पर
रसवंत निर्झर हूँ

साँझ ढलते
पश्चिमी नभ के
जलधि में डूब जाऊँगा
सूर्य हूँ मैं जुगनुओं की
चित्र----लिपि----में
जगमगाऊँगा
अनकही अभिव्यक्ति का मैं
स्वर अनश्वर हूँ

--देवेंद्र शर्मा इंद्र

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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