गाँव का
कुआँ
बरसों बाद आज
आज गाँव जाना हुआ
रास्ते भर बचपन की यादें
आंखों के आगे लहराती रहीं
वो पीपल का पेड़
जिसकी छाया में दोस्तों संग
पिट्ठू खेला करता था
वो कुआँ जिसका मीठा पानी
पी कर जवान हुआ
वो तालाब में भैंसों को नहलाना
नसूडे के पेड़ पर चढ़
नसूडे तोड़ कर लाना
नसूडे के रस से
पतंग बनाना, पेचें लड़ाना
इन्हीं यादों में खोया गाँव पहुँचा
तो मन उदास हो गया
तालाब के पानी से बदबू आ रही थी
न पीपल का पेड़ रहा न नसूडे का पेड़
न ही रहा वो कुआँ
वहाँ पर एक फास्ट-फूड कॉर्नर
बन गया है!
वहाँ कुछ देर रुक कर
पेप्सी पीते हुए
कुएँ के पानी की वो मिठास
याद आ गई
जिसके आगे यह पेप्सी
फीकी-सी लगी!
--यश छाबड़ा
मित्रों,
अनुभूति का 16 जून
का अंक अमलतास विशेषांक होगा। इस अवसर पर अमलतास से संबंधित
कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, दोहे, क्षणिकाएँ तथा अन्य
विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित हैं। रचना हमारे पास 1 जून तक
अवश्य पहुँच जानी चाहिए। --टीम अनुभूति |
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