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शैलेश मटियानी 

कथाकार, उपन्यासकार के रूप में अधिकतर पहचाने जाने वाले शैलेश मटियानी ने अपने लेखन के प्रारंभिक वर्षों में कविताएँ भी बहुत लिखी हैं। प्रस्तुत हैं उनके कुछ मुक्तक 'आजकल' के सौजन्य से।

अभिव्यक्ति में शैलेश मटियानी

 

पांच मुक्तक
 

राष्ट्र-ध्वजा का प्रश्न

प्रश्न पूछती फिरती सबसे राष्ट्र-ध्वजा इस देश की-
'तुमको ममता मेरी ज़्यादा है, या अपनी देह की?
क्या उत्तर दोगे तुम अपनी आने वाली पीढ़ी को-
अपने जीने की ख़ातिर यदि मेरी इज़्ज़त बेच दी?'

लेखनी का धर्म

शांति से रक्षा न हो, तो युद्ध में अनुरक्ति दे-
लेखनी का धर्म है, युग-सत्य को अभिव्यक्ति दे!
छंद-भाषा-भावना माध्यम बने उद्घोष का-
संकटों से प्राण-पण से जूझने की शक्ति दे!

संकल्प-रक्षाबंध

गीत को उगते हुए सूरज-सरीखे छंद दो
शौर्य को फिर शत्रु की हुंकार का अनुबंध दो।
प्राण रहते तो न देंगे भूमि तिल-भर देश की-
फिर भुजाओं को नए संकल्प-रक्षाबंध दो!

नया इतिहास देना है

अभय होकर बहे गंगा, हमें विश्वास देना है-
हिमालय को शहादत से धुला आकाश देना है!
हमारी शांतिप्रियता का नहीं है अर्थ कायरता-
हमें फिर खून से लिखकर नया इतिहास देना है!

दर्द

होंठ हँसते हैं, मगर मन तो दहा जाता है
सत्य को इस तरह सपनों से कहा जाता है।
खुद ही सहने की जब सामर्थ्य नहीं रह जाती
दर्द उस रोज़ ही अपनों से कहा जाता है!

1 मई 2007

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