किशोर सर्राफ़ की दो
कविताएँ
बचपन की रुलाई
ढ़ुलक पड़े नयनों से मोती
औरों के भाव जगाने को
देश नगर नव यंत्र क्या नहीं
मेरे पास लुभाने को।
सूर्योदय के इस उलास में
असह्य मुझे इतना भी दुःख
देख तेरी थोड़ी-सी पीड़ा
विकल हो उठा मेरा मुख।
रह जाएँगी सुख-दुःख की यादें
मुझको सारा जीवन
तनिक दुःखी हो, अधिक दुःखी हो
सहना सीखेगा मन।
तुम प्यारे बचपन के साथी
तुम्हें देख होता अनुराग
प्यारे लगते पंख पखेरू
प्यारे लगते नद-बन-बाग।
साँझ का काजल
आसमाँ पे बिखरा साँझ का काजल
हवा में लहराया सुरमई आँचल
खामोशी में डूबी है तनहाई
मदहोश साँझ और भी गहराई
दुनिया से बेगाना ये मिलने का अंदाज़
तुम और मैं, और दिलों की आवाज़
थके-माँदे परिंदों के गीत
उन्हें मिले हैं मन के मीत
गाते हैं पेड़ चहकती है वादियाँ
महकती हैं ये तुम्हारी ज़ुल्फें जवाँ
हाथों में लेकर तुम्हारा नर्म हाथ
जी चाहता है, चलूँ उम्र भर साथ
16 मई 2007 |