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अनुभूति में नईम की रचनाएं-

गीतों में-
अपने हर अस्वस्थ समय को
क्या कहेंगे लोग
करतूतों जैसे ही
काशी साधे नहीं सध रही
किसकी कुशलक्षेम पूछें
खून का आँसू
पानी उछाल के
प्रार्थना गीत
फिर कब आएंगे
महाकाल के इस प्रवाह में
लगने जैसा
शामिल कभी न हो पाया मैं
हम तुम
हो न सके हम

 

खून का आंसू

खून का आंसू -
हमारी आंख में, ठहरा हुआ है।

बाहरी हो तो करूं तीमारदारी,
रिस रहे नासूर से तो अक्ल हारी।

मरहमपट्टी से सरासर-
सच ये गहरा हुआ है।

हो गई भाषा पहेली, उलटबासी,
आज खांटे व्यंग्य की सूरत रूआंसी।

पूछता है काल हमसे,
शब्द का व्यक्तित्व क्यों दुहरा हुआ है?

अन्न का रिश्ता नहीं अब आचरण से,
जिंदगी से कहीं ज्यादा, साबका पड़ता मरण से

विधाता जनगणों का -
अंधा हुआ, बहरा हुआ है।

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