अनुभूति में सुमन
कुमार घई की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
कैसी वसंत ऋतु
खो चुका परिचय
चीत्कार
जीवन क्रम
प्रेम कहानी
प्रेम के दो भाव
मनदीप पुकार
मैं उसे ढूँढता हूँ
वह पेड़ टूट गया
क्षणिकाओं में-
वसंत
संकलनों में-
वसंती हवा-
काश मिलो तुम भी
धूप के पाँव-
गरमी की अलसाई सुबह
वर्षा मंगल–
सावन और विरह
गाँव में अलाव –
स्मृतियों के अलाव
गुच्छे भर अमलतास–
अप्रैल और बरसात
शुभकामनाएँ
नया साल–
नव वर्ष की मंगल वेला पर
–नव
वर्ष के गुब्बारे
जग का मेला–
गुड्डूराजा
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वह पेड़ टूट गया
हर बरस जो फूलों से भरा था
वह पेड़ इस बरस टूट गया
यह उसकी नियति ठहरी
या प्रकृति की विडम्बना
अपना सौरभ बिखराता
सौंदर्य दिखलाता
और था मदमाता यौवन
फिर क्यों वनमाली रूठ गया
क्यों वह पेड़ टूट गया
कभी दे देह दान
वह बना यज्ञ समिधा
दे फल दान उसने मिटायी क्षुधा
सरस था वह, प्यास बुझाता रहा
कभी अपने तन से
किसी निर्धन के चूल्हे में
आग जलाता रहा
बाहें फैला के दिया
उसने आश्रय पंछियों को
अग्नि सी तपती धूप में
छाँव दी पंथियों को
हर बाढ़ में उसने बाँध लिया
अपने आलिंगन में धरा को
हर पतझड़ में अपने पत्तों से
दिया नवजीवन वसुन्धरा को
स्वयं ले विषाक्त श्वास
वो हमारा प्राणाधार बना
और हमने फैला के प्रदूषण
उस प्राणदाता का
श्वास छीन लिया?
बना के अक्षिद वृष्टि
उस सरस अमृत घट को
विष से सींच दिया?
ऐसी मृत्यु उसकी नियति न थी
न थी यह प्रकृति की विडम्बना
वनमाली को दोष क्यों?
हमसे हो उपेक्षित वो कल्पतरु
बस रूठ गया—
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