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ओस की एक बूँद
गीत गाती
मुट्ठी भर
विस्मृत
स्तब्ध
सनन-सनन स्मृतियाँ
सार्थकता

 

स्पर्श

यहीं से उठता है
वह नगाड़ा
वह शोर
वह नाद
जो हिला देता है
पत्थरों को
झरनों को
आकाश को
वही सब जो मुझमें
धरा है।
सिर्फ नहीं है
तो एक स्पर्श
जहाँ से
यह सब
उठता है।

१ मार्च २०१६

 

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