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                     अनुभूति में 
					
					डॉ. दिनेश 
					चमोला शैलेश 
                    की रचनाएँ— 
                    दोहों में- 
					माँ 
					कविताओं में- 
					
					अनकहा दर्द 
                    
                    एक पहेली है जीवन 
                    
                    खंडहर हुआ अतीत 
                    
                    गंगा के किनारे 
                    जालिम व्यथा 
					दूधिया रात 
					धनिया की चिंता 
                    सात समुन्दर पार 
					पंखुडी 
					
                    यादें मेरे गाँव की 
                    
                    ये रास्ते 
                    
                    रहस्य 
					 
					संकलन में- 
                    पिता 
					की तस्वीर- दिव्य आलोक थे पिता 
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					यादें मेरी गाँव 
					की 
					हिमगिरि 
					के किसलय अंचल की, स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों, यादें मेरे गाँव की? 
					 
					वह प्रकृति का मधुर अंक 
					अवचेतन मन का आलोक 
					सौम्य भूमि वह गिरि प्रदेश की 
					सुन्दरता का दिव्यालोक 
					मातृभूमि की याद दहलती 
					मधु सौरभ सी छाँह की 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यो, यादें मेरे गाँव की? 
					 
					रूप यौवनी प्रकृति मनोरम 
					खेतों में खलिहानों में 
					खगकुल कलख करते रहते 
					चौपालों-गलियारों में 
					प्रेम पताका सदा फहरती 
					भूपालों के ठाँव की 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों, यादें मेरे गाँव की? 
					 
					प्रेम वत्सला शश्य श्यामला 
					वसुधा उत्तराखण्ड की 
					देवभूमि का बिम्ब उभरता 
					ओ पर्वत भूखण्ड की 
					सदा स्वप्न में रहूँ देखता 
					वे चौपाले गाँव की 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों, यादे मेरे गाँव की? 
					 
					दादी माँ थी सदा सुनाती 
					कथा कहानी देश की 
					देवभूमि की, किन्नरियों की 
					प्राकृतिक परिवेश की 
					इसीलिए ये स्मृतियाँ कौंधती 
					उस बरगद की छाँव की 
					 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों,यादें मेरे गाँव की? 
					 
					कौशलपुर की भूमि रम्य थी 
					वसुओं के केदार की 
					शैशव के वे क्षण असीम थे 
					मातृभूमि के प्यार की 
					फिर तलाश है गत शैशव के 
					गुमसुम से उस नाम की 
					 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों,यादें मेरे गाँव की? 
					धवल 
					हिमालय हँसता रहता 
					करती मंदाकिनी किल्लोल 
					सौरभ पवन उड़ाती जाती 
					ज्यो सावन की सी हिंडोल 
					प्रेम भूमि आशीषे देती 
					भूले मेरी गाँव की 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों,यादें मेरे गाँव की? 
					 
					गगन चूमते धवल शिखर थे 
					देते करूणा का ये दान 
					चमन-चमन में मधुकर करते 
					मधुर-मधुर स्वर में गंुजान 
					तरू विटपों से कूज जगाती 
					कोकिल मेरे गाँव की 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों,यादें मेरे गाँव की? 
					 
					जाग रहा था भाग्य तिमिर का 
					ओ तिमिरों में था आलोक 
					ग्र्राम्य भूमि में पनप रहा था 
					मेरा वह स्वप्नों का लोक 
					किन्तु भाग्यवश हवा हो गई 
					यादें वे पैगाम सी 
					हिमगिरि के किसलय अंचल की, और स्वप्नों के छाँव की 
					अपलक घिर आती है ये क्यों,यादें मेरे गाँव की?  
					 
					१६ अगस्त २००३  |