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                     अनुभूति में 
					
					डॉ. दिनेश 
					चमोला शैलेश 
                    की रचनाएँ— 
                    दोहों में- 
					माँ 
					कविताओं में- 
					
					अनकहा दर्द 
                    
                    एक पहेली है जीवन 
                    
                    खंडहर हुआ अतीत 
                    
                    गंगा के किनारे 
                    जालिम व्यथा 
					दूधिया रात 
					धनिया की चिंता 
                    सात समुन्दर पार 
					पंखुडी 
					
                    यादें मेरे गाँव की 
                    
                    ये रास्ते 
                    
                    रहस्य 
					 
					संकलन में- 
                    पिता 
					की तस्वीर- दिव्य आलोक थे पिता 
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					पंखुड़ी 
					एकाएक 
					मिली है मुझे 
					आज 
					कुम्हालाये हुए गुलाब की 
					एक पंखुड़ि 
					जो 
					नहीं लगी है मुझे 
					गुलाब सी 
					फिर भी 
					मैंने उसे 
					छितराना चाहा है 
					परन्तु 
					भूमि के स्पर्श से ही 
					उभर आती है उसमें 
					एक तस्वीर  
					'वह 
					वर्षों पहले की तुम हो  
					तुम  
					जिसने दिया था 
					मौन स्वीकृति में 
					अपना हाथ मुझे 
					इस पंखुड़ि के रूप में 
					आजीवन साथ देने का 
					विधि के आलेख से 
					कूच 
					करना पड़ा था तुम्हें 
					जीवन से 
					मौन स्वीकृति की 
					धरोहर, यह पंखुड़ि 
					अंतराल तक 
					निभाती रही थी 
					मेरा साथ 
					यद्यपि 
					अब तक 
					मर चुकी है उसकी सुगंध 
					फिर भी 
					तुम्हें पा जाने की ललक 
					नहीं छोड़ पाया हंू मैं 
					संजोए हंू विश्वास 
					कि 
					'अवश्य आओगे 
					एक दिन 
					फिर मेरे 
					जीवन के सूने आंगन में 
					बासंती फूल बन 
					मेरे संग खिलने  
					१ दिसंबर 
					२००५  |