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अनुभूति में प्रदीप मिश्र की रचनाएँ

कविताओं में-
तुम नहीं हो शहर में
कनुप्रिया
ज़िन्दा रहने के लिये
दुख जब पिघलता है
पहाड़ी नदी की तरह
पायदान पर
फिर कभी
फिर तान कर सोएगा
फूलों को इंतज़ार है
महानगर
मेरे समय का फलसफा
मैं और तुम
वायरस

स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
सफेद कबूतर

डूबते हुए हरसूद पर-
एक दिन
जब भी कोई जाता
पाकिस्तान से विस्थापित
फैली थी महामारी
बढ़ रहा है नदी में पानी
सुनसान सड़क पर

संकलन में
नया साल- यह सुबह तुम्हारी है

  सफ़ेद कबूतर

उन्नीस सौ सैंतालिस का अगस्त महीना था
जब मैं छूटा था उन रक्तिम पंजों से
और आज़ादी की हुलास में उड़ता ही चला गया
उड़ान देखकर दंग था आसमान
वरुण देव ने दबा ली थी दाँतों तले अँगुली

मेरा रंग सफ़ेद झक
और आधी रात का वक्त
चारों तरफ़ काला घुप्प
ऐसे में मेरे पंख हवाओं में
गुलाबी ठंड भर रहे थे

मेरे शरीर से
आज़ादी का सुख
पूर्णिमा के चाँद से भी ज़्यादा
तेज रौशनी के साथ दमक रहा था

एक कबूतर अंधेरे के खिलाफ़
पहली बार उड़ान भर रहा था

इसलिए खुश थे सभी देवी-देवता
कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र
खुशी से दे दिया मुझे
इंद्रधनुष ने दिए दो रंग उपहार में
हरे रंग को एक पंख पर
दूसरे पर पर केशरिया
पीठ के बीचों-बीच
घूमते हुए सुदर्शन चक्र को लिए
मैं आधी सदी से उड़ रहा हूँ

इंतज़ार कर रहा हूँ
कब सुबह हो और उतरूँ
अपने देश की आज़ाद धरती पर

२४ जनवरी २००६

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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