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अनुभूति में प्रदीप मिश्र की रचनाएँ

कविताओं में-
तुम नहीं हो शहर में
कनुप्रिया
ज़िन्दा रहने के लिये
दुख जब पिघलता है
पहाड़ी नदी की तरह
पायदान पर
फिर कभी
फिर तान कर सोएगा
फूलों को इंतज़ार है
महानगर
मेरे समय का फलसफा
मैं और तुम
वायरस

स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
सफेद कबूतर

डूबते हुए हरसूद पर-
एक दिन
जब भी कोई जाता
पाकिस्तान से विस्थापित
फैली थी महामारी
बढ़ रहा है नदी में पानी
सुनसान सड़क पर

संकलन में
नया साल- यह सुबह तुम्हारी है

  एक दिन

एक दिन विकसित समाज में
कोई दबाएगा बिजली का खटका तो
उसकी बत्ती से रौशनी की जगह
जूते बरसेंगे
इसबार पाँव की जगह
वे सिर पर सवार होंगे

कोई टेबल लैम्प जलाएगा
पढ़ने के लिए
उसके सामने फैल जाएगी
बस्ते की स्याही

कोई कम्प्युटर का खटका दबाएगा
तो उसके कम्प्युटर के स्क्रीन पर
उभरेगा हुक्का खुद को गुड़गुड़ाते हुए

उसके तम्बाकू के नशे में
पागल हो जाएगा कम्प्युटर का सीपीयू

कोई हीटर का खटका दबाएगा
चाय बनाने के लिए
तो हीटर पर रखी केतली में
चूल्हे के खूनभरे आँसू उबलेंगे

नहीं बचेंगे खिड़कियों में झरोखे
दरवाजों की ओट में गहन अन्धकार होगा
नीम की छाँव में सिर्फ धूप होगी
खेतों के गर्भ में खदबदाने के लिए
कुछ भी नहीं बचेगा

फिर दबाते रहिए बिजली के खटके
गाड़ते जाएँ विकास के झंडे
कहीं कुछ नहीं होगा
जीवन जैसा।

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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