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नव वर्ष अभिनंदन

ये सुबह तुम्हारी है

         

सूरज की नन्हीं किरणें
चुपके से उतर आईं हैं घर के अंदर
और खेल रहीं हैं छुपनछुपाई
खुशी से खुल गईं हैं खिड़कियाँ
हवा की शुद्धता हृदय में घुल रही हैं
ये सुबह तुम्हारी है।
खेतों की तरफ़ जा रहे हैं किसान
गाँव त्यौहार की तैयारी कर रहा है
कारखानों की तरफ़ बढ़ रहे हैं मज़दूर
चूल्हों के पास
अगले दिन की रोटी का इंतज़ाम है
टहल कर घर लौट रहे हैं पिताजी
घर में गूँज रहा है जीवन संगीत
ये सुबह तुम्हारी है।

दस्तक दे रहा है अख़बार
मुस्करा रहा है पहली बार
आज उसके अंदर
बुरा कम अच्छा ज़्यादा है
ये सुबह तुम्हारी है

कलम के आस-पास जुटे हुए हैं अक्षर
वर्षों बाद आग्रह कर रहे हैं
एक प्रेम कविता की
एक लड़की
पृथ्वी की तरह नज़र आ रही है
और उसकी परिधि पर बैठा कबूतर

गुटर गूं कर रहा है
मंगलमय क्षितिज पर उग रहा है नव वर्ष
ये सुबह तुम्हारी है।

प्रदीप मिश्र

  

नव वर्ष अभिनंदन!!

मंगलमय क्षितिज पर आई
नव वर्ष की ये सुबह तुम्हारी

खुशी से खोले आज खिड़कियाँ
गुँजे हर घर में कोयल की कूक
साथ हों नव किरणों का मेला
महक रही रजनीगंधा न्यारी

मंगलमय क्षितिज पर आई
नव वर्ष की ये सुबह तुम्हारी

नवसपन सजाएँ, नए जोश से
दोस्ती औ' मीठे संबंध बढाएँ
संकल्प करें कि मानवता पर
दानवता कभी पड़े न भारी

मंगलमय क्षितिज पर आई
नव वर्ष की ये सुबह तुम्हारी

दीपिका जोशी 'संध्या
'1 जनवरी 2008

 

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