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अनुभूति में प्रदीप मिश्र की रचनाएँ

कविताओं में-
तुम नहीं हो शहर में
कनुप्रिया
ज़िन्दा रहने के लिये
दुख जब पिघलता है
पहाड़ी नदी की तरह
पायदान पर
फिर कभी
फिर तान कर सोएगा
फूलों को इंतज़ार है
महानगर
मेरे समय का फलसफा
मैं और तुम
वायरस

स्कूटर चलाती हुई लड़कियाँ
सफेद कबूतर

डूबते हुए हरसूद पर-
एक दिन
जब भी कोई जाता
पाकिस्तान से विस्थापित
फैली थी महामारी
बढ़ रहा है नदी में पानी
सुनसान सड़क पर

संकलन में
नया साल- यह सुबह तुम्हारी है

  पायदान पर

ठहरो पृथ्वी
ठहरो ऋतुओं
ठहरो हवाओं
ठहरो और
इस रचनाकार से मिलकर जाओ
यह ऋतुओं का राजा बसंत है

इसके बिना अधूरी है
तुम्हारी सारी सुंदरता
सृजनशीलता तो असंभव

यह बसंत है
जिसने अपने पीठ पर लाद रखा है
विचारों और भावनाओं के ग्रह-नक्षत्र
इसकी आँखों में
एक तरफ़ सूरज जड़ा है
दूसरी तरफ़ चंद्रमा
सुनता है हवाओं के स्पंदन
और ठीक उस समय
जब सृजन के लिए सबसे बेहतर मौसम होता है
पीठ पर लदे ग्रह-नक्षत्रों को उतारकर रखता है
ज़मीन पर और चुपके से
सारे ग्रह-नक्षत्र उतर जाते हैं
धरती के गर्भ में
जिनके अंकुरण के साथ-साथ
नये-नये ब्रह्मांड फोड़ते हैं कोपल

नये-नये ब्रह्मांड रचनेवाला रचनाकार
खड़ा है आज जीवन के
पचहत्तरवे पायदान पर
इतनी ऊँचाई पर खड़े रचनाकार को
अपनी शुभकामनाएँ देते जाओ
ठहरो पृथ्वी
ठहरो ऋतुएँ
ठहरो हवाएँ

(हमारे समय के समर्पित रचनाकर्मी एवं संस्कृतकर्मी श्री बसंत राशिनकर के पचहत्तरवे जन्मदिन पर शुभकामनाओं के साथ )

२४ जनवरी २००६

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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