| अनुभूति में
                    
                  ममता कालिया की रचनाएँ
                   नई रचनाओं में-पापा प्रणाम (दो कविताएँ)
 बेटा
 माँ
 लड़की
 वर्कशॉप
 छंदमुक्त में-आज नहीं मैं कल बोलूँगी
 किस कदर मासूम होंगे दिन
 दीवार पर तस्वीर की तरह
 पैंतीस साल
 यह जो मैं दरवाज़ा
 |  | वर्कशॉप 
                  मेरे साथ सीढ़ी-चढ़िये सँभलकरइस रोशनी के सहारे
 आज मैं आपको अपनी वर्कशॉप लिए चलती हूँ।
 जैसे बढ़ई और मैकेनिक की
 ठीक वैसी मेरी भी है वर्कशॉप।
 सीढ़ी खड़खड़ाती है मच्छर भी हैं अंदर
 पर हम अगरबत्ती जला लेंगे।
 उस दीवार पर दो जोड़ी माँ-बाप हैं हमारे
 देख रहे हैं इन्हें।
 मेरे अट्ठाईस-तीस सालों का इतिहास
 रहा है इन्हीं के पास।
 ये दूसरी दीवार पर नेहरू और गांधी हैं।
 इनकी आत्मकथाओं ने गर्मियों की
 मेरी तमाम छुट्टियाँ बाँधी हैं।
 तब तो ये नागवार लगती थीं,
 जीने की तमीज़ में
 आज खरी चाँदी हैं।
 वह लंगड़ी धूल भरी मेज़ पर एक ट्रे पड़ी है।
 इस दो बाइ एक के लोहे के टुकड़े में
 न जाने कितने ज़माने, कितने फ़साने समा जाते हैं।
 अधूरी कहानियों से खचाखच भरी यह ट्रे
 कई बार तो बिलबिला उठती है,
 फड़फड़ा कर उड़ा देती है पन्ने।
 कई बार झेल जाती है मेरा झूठ और मक्कारी।
 वहीं हर कलमघिस्सू की तरह
 सच को इतने लत्ते पहनाना कि वह रहस्य बन जाए
 और रहस्य की इतनी कलई उतारना कि वह लगे सच।
 ये दो ऊँचे-ऊँचे रैक लगे हैं इस तरफ़
 भरे हैं किताबों से ठसाठस।
 नहीं सभी किताबें साहित्य नहीं होती
 थोड़ी वाहित्य भी होती हैं
 ये ज्योतिष होम्योपैथी और कॉमर्स की किताबें
 मेरे साथी के पुराने प्रेम हैं।
 कई शाश्वत ग्रंथों के खजला फ्रेम हैं।
 सच कहूँ तो महान रचनाएँ पढ़ने के बाद
 अपना लिखना ठप्प पड़ जाता है,
 न लिखने का आनंद हर दिन लुभाता है।
 वे ढेरों बॉलपेन पड़े हैं
 किसी की नोक ख़राब है तो किसी की पलक।
 जब से कलम से लिखना बंद किया है
 लिखावट कैसी परायी हो गई है
 न कोई अपना पेच बचा है न खम।
 न सुलेख की खुशी न विलेख का गम।
 दीवार के सहारे ये जो छोटे-छोटे ग्लास रखे हैं।
 उनमें झाँकियेगा मत।
 तली में कॉफी सूख गई है
 कलम की स्याही की तरह
 जागते रहने के संक्षिप्त प्रयत्न हैं ये।
 जबकि सबसे अच्छे कथानक सूझते हैं रात में
 जब हम बिस्तर में लुढ़के होते हैं
 रजाई के तले।
 सुबह उनकी छवि धुंधली हो जाती है
 वर्कशॉप की हर कोशिश कहाँ काम आतीं है।
 अनुभव को अनुभूति बनाने में
 एक उम्र तमाम हो जाती है।
 ७ सितंबर २००९ |