| अनुभूति में
                    
                  ममता कालिया की रचनाएँ
                   नई रचनाओं में-पापा प्रणाम (दो कविताएँ)
 बेटा
 माँ
 लड़की
 वर्कशॉप
 छंदमुक्त में-आज नहीं मैं कल बोलूँगी
 किस कदर मासूम होंगे दिन
 दीवार पर तस्वीर की तरह
 पैंतीस साल
 यह जो मैं दरवाज़ा
 |  | बेटा 
                  जब यह पैदा हुआ थादुबला-सा, रोंदू और भौंदू
 हम लाए थे ख़रीद कर बेबी-बुक।
 रात-रात भर उसका पारायण किया था।
 दूध हर घंटे, दवा प्रतिदिन, नहलाने के ढब और ढंग।
 तब यह कोई मौलिकता दिखाता था
 तो हम सीधे डॉक्टर के पास भागे जाते थे,
 डॉक्टर यह हँसते-हँसते रो पड़ा तो क्यों?
 डॉक्टर आज यह बिल्कुल नहीं रोया तो क्यों?
 ड़ॉक्टर इसकी आँखों में काजल लगाएँ?
 सोते में दूध का समय हो तो उठाएँ या न उठाएँ?
 डॉक्टर मोटी फीस लेकर छोटी-छोटी बातें समझाते।
 हम उन हिदायतों को रटते जाते।
 इसके शैशव के तीन वर्ष
 हमने बेबी बुक शाला मे बिताए।
 ये सबक अगली संतान के समय काम आए।
 आज यह बड़ा हो कर हमारे सामने खड़ा है
 जीवन-शैली की अनोखी माँगों पर अड़ा है।
 असहमत होकर बाज़ार गया है
 और वहाँ से ख़रीद कर लाया है
 माता-पिता की निर्देश-पुस्तिका।
 तीन सौ पैंसठ पन्नों की इस पुस्तक में
 कैलेंडर का हर दिन एक सबक सिखाता है
 जैसे अच्छे माँ-बाप बच्चों से उलझते नहीं हैं।
 अच्छे माँ-बाप आपस में झगड़ते नहीं हैं।
 अच्छे माँ-बाप बेवजह डाँटते नहीं हैं
 अच्छे माँ-बाप सुबह-शाम काँखते नहीं हैं।
 अच्छे माँ-बाप बच्चों के कमरों में
 वक्त-बेवक्त झाँकते नहीं हैं।
 बच्चों की साल गिरह पर
 -अच्छे माँ-बाप उन्हें उपहार देते हैं।
 -उनके कैसे भी दोस्त घर आएँ
 -अच्छे माँ-बाप उन्हें सद्व्यवहार देते हैं।
 -अच्छे माँ-बाप
 प्लीज़ सॉरी और थैंक्यू की ज़ुबान जानते हैं
 -अच्छे माँ-बाप बच्चों की पसंद को सर्वोपरि मानते हैं।
 -आचार संहिता विस्तृत और व्यापक है।
 -इसका एख-एक पृष्ठ चीख रहा है
 -माँ-बाप की भूमिका में आप निरर्थक हैं।
 ७ सितंबर २००९ |