| अनुभूति में
                    
                  ममता कालिया की रचनाएँ
                   नई रचनाओं में-पापा प्रणाम (दो कविताएँ)
 बेटा
 माँ
 लड़की
 वर्कशॉप
 छंदमुक्त में-आज नहीं मैं कल बोलूँगी
 किस कदर मासूम होंगे दिन
 दीवार पर तस्वीर की तरह
 पैंतीस साल
 यह जो मैं दरवाज़ा
 |  | किस कदर मासूम 
                  होंगे दिन किस कदर मनहूस होंगे दिनतुम्हारे बिन।
 यह घर होगा न होगी इसमें धड़कन
 न अख़बारों की सरसर
 न कप-प्लेटों की खनखन।
 कलम-काग़ज़ की हरकत भी कहाँ फिर
 न टेलीफोन की दिन रात टन टन।
 कि
 बच्चे भी सहम कर सो रहेंगे सांझ से ही
 किताबें ताक पर रक्खी रहेंगी बांझ-सी ही।
 कि
 दुनिया भर की गप्पें और किस्से
 कहो कैसे पड़ेंगे मेरे हिस्से।
 करेगा कौन मुझसे मीठी बातें
 कटेंगी कैसे सन्नाटे सी रातें
 यह तय है खुश नहीं तुम, खुश नहीं मैं
 है यह फैसला किसका कहाँ से।
 नए साथी में पाओगे लड़कपन
 कहाँ पाओगे मेरा-सा सगापन?
 करोगे उसकी कच्चाई कपड़छन
 फिर होगा रंगशाला से पलायन।
 क्या होगा इससे हासिल तुम बताओ
 बचा थोड़ा समय है आज आओ।
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