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                रिश्ते हैं 
                ज़िन्दगी रिश्तों की बात 
                भली कही  
                बनाना सबके वश का नहीं 
                कसौटी कसना आसां है  
                खरा उतरना मुश्किल है 
                रिश्ते चन्द्रमा की कलाएँ 
                नहीं 
                ये घटते बढ़ते नहीं 
                ये माँगते हैं, चाहते हैं 
                विश्वासरूपी पवित्र घर  
                रिश्तों की अपनी भाषा है  
                ये शब्दों के मोहताज़ नहीं 
                आँखों की अपनी भाषा है  
                इनका उठना गिरना ही काफ़ी है। 
                खुश्क ज़िन्दगी में तुम्हारा 
                आगमन  
                भवनाओं की नमी का आचमन  
                बना रहने दो सब ऐसा ही  
                इनका मिटना आसां नहीं।  
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                अगस्त २००९  |