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                मोबाइल महिमा  
                 
                मोबाइल! ओ मोबाइल! 
                तुम कितने हसीन हो ! 
                छोटे से पीस हो 
                पर सारे दिल तुम्हारे पास हैं 
                तुम सारे दिलों के पास हो 
                तुमने कुछ ही सालों में 
                संसार मुठ्ठी में कर लिया है 
                तुम युवकों की शान हो 
                युवतियों की जान हो 
                तुम एक बात बताओ 
                दिन-भर एसएमएस से 
                घबरा नहीं जाते? 
                मन घृणा से भर नहीं जाता? 
                जब आदमी सड़क पर थूक कर 
                फिर माउथपीस से 
                ओंठ चिपका लेता है 
                पान, शराब, सिगरेट की गंध से 
                तुम्हारा दिल नहीं घबराता? 
                कभी तो सोचते होगे 
                किन मूर्खों से पाला पड़ा है ! 
                टायलेट तक में पीछा नहीं छोड़ते 
                तुम्हें तो चायवाले, 
                सब्ज़ीवालों तक ने नहीं बख्श़ा 
                किसी ने तो मज़ाक में कह भी दिया 
                जब ठेले पर बिकेगा मोबाइल 
                तब इसे जन-सुलभ कहा जाएगा 
                सच-सच कहो, 
                तुमने कभी सोचा था 
                अपने भारत में अपनी इस दुर्गति के बारे में? 
                २४ जनवरी २००५
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