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				अकेली कहाँ हूँ?  
				 
				मैं साँझ अकेली सोच रही हूँ  
				मेरे आने मात्र से क्यों दुबक गये परिंदे? 
				माँ ने क्यों बुला लिया बच्चों को घर में?  
				लोग भागने लगे घरों की तरफ  
				सब तरफ एक ही शब्द  
				साँझ हो गई भई, साँझ हो गई।  
				अरे, मैं आई तो क्या हुआ?  
				देखो, सब तरफ घंटियां बजने लगीं मंदिरों में।  
				सारा शहर यकायक नहा उठा है रौशनी से  
				खोमचे सज गये हैं।  
				दिनभर थके लोग आराम कर रहे हैं  
				मेरे पहलू में।  
				मैं कहाँ हूँ अकेली? 
				सारा जहाँ है मेरी मुठ्ठी में।  
				 
				२३ मई २०११ 
  
        
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