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अनुभूति में शाहिद नदीम की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
किसी फरेब से
तसव्वुर में तेरा चेहरा
दिल दुखाता है
हर नफस को खिताब

अंजुमन में-
उसी फिजां में
देखते हैं
नस्ले-आदम
शब का सुकूत
सुनहरी धूप का मंजर

 

शब का सुकूत

शब का सुकूत ही तो है अब दरम्यान में
कब तक दिए जलाओगे खाली मकान में।

कोई इसे खरीद सकेगा जहान में
इक सिलसिला है कर्ब का ग़म की दुकान में।

यह खौफ़ था परिन्दे को ऊंची उड़ान में
कुछ पर बिखर न जाएं कहीं आसमान में।

खुशियों की आरजू है तो फिर यह भी सोच ले
कुछ ज़लजले तो आएंगे ग़म के मकान में।

सब तल्खियां मिज़ाज की पल भर में दूर हो
वो खूबियां हैं दोस्तों उर्दू जुबान में।

वो ज़ख्म दे दिया है तेरी क़ुरबतों ने  आज
रोशन सदा रहेगा जो दिल के मकान में।

अब कुछ भी मेरे पास नहीं है मेरे नदीम
जो कुछ बचा था दे दिया उसकी अमान में।

१४ जून २०१०

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