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अनुभूति में शाहिद नदीम की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
किसी फरेब से
तसव्वुर में तेरा चेहरा
दिल दुखाता है
हर नफस को खिताब

अंजुमन में-
उसी फिजां में
देखते हैं
नस्ले-आदम
शब का सुकूत
सुनहरी धूप का मंजर

 

नस्ले आदम

नस्ले-आदम के रहनुमाई हो
ख़त्म यह आपसी लड़ाई हो

इसको कहते हैं गुनाहे-अजीम
पीठ पीछे अगर बुराई हो

जिन्दा रहती है वह सनद बनकर
बात तहरीर में जो आई हो

दस्तकें दे के लौट जाती है
जैसे अब नींद भी पराई हो

हो जो अहसास आदमीअत का
जिंदगी में बड़ी कमाई हो

नाव कागज की तैर सकती है
शर्त यह है कि रहनुमाई हो

वह तसव्वुर में ऐसे आये नदीम
जैसे आँगन में धूप आई हो

१४ जून २०१०

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