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असलियत के साथ
असलियत के साथ ज़्यादा देर रह पाया नहीं
मैं कभी भी कोई अच्छी बात कह पाया नहीं
एक दिन उसको किसी ने आईना दिखला दिया
उम्र-भर फिर चाँद धरती पर कभी आया नहीं
मैंने सोचा ज़िंदगी में मैं भी कुछ अच्छा करूँ
अच्छे लोगों को जो देखा कुछ समझ आया नहीं
उसको हरदम चाहिए था मेरी जिल्लत का मज़ा
उसने जब तारीफ़ की तब भी समझ आया नहीं
उम्र-भर पत्थर खंगाले और ये सोचा किया
आज तक इस हाथ में हीरा कोई आया नहीं
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