| शाम से उदासी 
                  आज फिर शाम से उदासी हैफिर कोई आरज़ू-सी प्यासी है
 कैसे इज़हार हो मोहब्बत काबात कहने को ये ज़रा-सी है
 मेरी आँखों को मिल गए आँसूरूह तो अब भी मेरी प्यासी है
 साक़िया अब तो उठा दे ये नक़ाबमैकदे में बहुत उदासी है
 सैंकड़ों ग़म मेरी तलाश में हैंऔर ये जान इक ज़रा-सी है
 २१ सितंबर २००९ |