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हज़ारों नेकिया

  पूरी हो कैसे आख़िर

पूरी हो कैसे आख़िर ये आरज़ू मेरी
आता नहीं ज़मीं पे ये आसमाँ कभी

दिल टूटने का उसको कैसे पता चले
आवाज़ दर्दे दिल की आती नहीं कभी

फिर से है, क्यों दिखाता ये खेल अब जहाँ
मुद्दत हुई कि हमको आती नहीं हँसी

तुम ऐब ज़माने के ढूँढ़ों न मेहरबाँ
है कौन-सा वो इन्सां जिसमें नहीं कमी

अब तुम तो न सताओ, छोड़ो ये बेरूखी
दुनिया बनी है दुश्मन जबसे नज़र मिली

३ मई २०१०

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