| 
                   अनुभूति में 
					जयप्रकाश मिश्र की रचनाएँ- 
					नयी रचनाओं में- 
					अगर चीनी नहीं 
					कहता है तू महबूब 
					कई साँचों से 
					चिकनी मिट्टी 
                  
                  अंजुमन में- 
					आँधियों के देश में 
					कोई जड़ी मिली नहीं 
					कोई सुग्गा न कबूतर 
					गरमजोशी है लहजे में 
					मेरा यूँ जाना हुआ था 
					वफा याद आई 
					सजाना मत हमें 
					हवा खुशबू की 
                 | 
                  | 
          
                
                   
                  कोई सुग्गा न 
					कबूतर 
					
                  कोई सुग्गा न कबूतर, चिड़ी नहीं आती
					 
					मेरी मुंडेर पर अब गिलहरी नहीं आती। 
					 
					मैं अब बच्चा नहीं रहा, यह जानते हैं सब 
					तभी मेले से कोई बाँसुरी नहीं आती। 
					 
					कोई सामान छूट जाये न स्टेशन पर 
					वक्त की ट्रेन लौटकर कभी नहीं आती। 
					 
					हमें सबकी तरह चमचागिरी नहीं आती, 
					अगर आती तो फिर ये मुफलिसी नहीं आती। 
					 
					हुआ है ठूँठ वो शहतूश सूखकर अब तो 
					जानता है कि तू मिलने कभी नहीं आती। 
					 
					दिलों की तस्करी इस कद्र बढ़ गयी यारों  
					किसी को अब किसी की याद भी नहीं आती।  
					 
					२० अप्रैल २०१५  
                 |