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                   अनुभूति में 
					जयप्रकाश मिश्र की रचनाएँ- 
					नयी रचनाओं में- 
					अगर चीनी नहीं 
					कहता है तू महबूब 
					कई साँचों से 
					चिकनी मिट्टी 
                  
                  अंजुमन में- 
					आँधियों के देश में 
					कोई जड़ी मिली नहीं 
					कोई सुग्गा न कबूतर 
					गरमजोशी है लहजे में 
					मेरा यूँ जाना हुआ था 
					वफा याद आई 
					सजाना मत हमें 
					हवा खुशबू की 
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                  चिकनी मिट्टी 
					
                  चिकनी मिट्टी के वो वर्तन, वो 
					गाड़ियाँ सारी 
					चुरा गया कोई माचिस की डिब्बियाँ सारी। 
					 
					पसरते जा रहे ख्वाबों का असर है शायद 
					सिमटती जा रही पाँवों में दूरियाँ सारी। 
					 
					सर्दियों में ये गरीबों को जिन्दगी देंगी 
					कहीं सम्भालकर रख दो ये पन्नियाँ सारी। 
					 
					गालियाँ खाके पुलिस की वो रिक्शे वाला 
					पी गया एक-दो कश में ही बीड़ियाँ सारी। 
					 
					क्या पता, कौन सा झोंका उड़ा के भाग गया 
					पेड़-पत्तों से बनायी थीं फिरकियाँ सारी। 
					 
					मुझको मंजिल पे खड़ा कर ट्रेन चल निकली 
					हो चलीं गर्क धुएँ में सवारियाँ सारी। 
					 
					इक सहारा था, वो चिट फंड घोटाले में गया 
					बड़ी मेहनत से जुटाई थीं पूजियाँ सारी। 
					 
					१५ नवंबर २०१५  
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