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                   अनुभूति में 
					जयप्रकाश मिश्र की रचनाएँ- 
					नयी रचनाओं में- 
					अगर चीनी नहीं 
					कहता है तू महबूब 
					कई साँचों से 
					चिकनी मिट्टी 
                  
                  अंजुमन में- 
					आँधियों के देश में 
					कोई जड़ी मिली नहीं 
					कोई सुग्गा न कबूतर 
					गरमजोशी है लहजे में 
					मेरा यूँ जाना हुआ था 
					वफा याद आई 
					सजाना मत हमें 
					हवा खुशबू की 
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                  गरमजोशी है लहजे 
					में 
					 
					गरमजोशी है लहजे में मगर नाशाद जैसी है 
					गजल मेरी किसी मजलूम की फरियाद जैसी है 
					 
					परिंदा खौफ के मारे छिपा बैठा है चाहत का 
					तेरी तिरछी नजर गोया किसी सय्याद जैसी है 
					 
					अवाम इस मुल्क की कहने को तो आजाद कह लो तुम 
					मगर ये आज भी बिन बाप की औलाद जैसी है 
					 
					हर इक तकलीफ में ब़ज्नो-बहर के गुर सिखाए हैं  
					मैं हूँ शागिर्द उसका, वो मेरे उस्ताद जैसी है 
					 
					मन्दिर-ओ-मस्जिदें, कुरआन-ओ-गीता ठीक है लेकिन 
					मुहब्बत के बिना हर चीज बेबुनियाद जैसी है 
					 
					शजर, फसलें, मकाँ, रस्ते सभी धुँधले हुए हैं यूँ 
					सबा-ए-गर्द, लगता है, किसी की याद जैसी है। 
					
                  २० अप्रैल २०१५  
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