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                   अनुभूति में 
					जयप्रकाश मिश्र की रचनाएँ- 
					नयी रचनाओं में- 
					अगर चीनी नहीं 
					कहता है तू महबूब 
					कई साँचों से 
					चिकनी मिट्टी 
                  
                  अंजुमन में- 
					आँधियों के देश में 
					कोई जड़ी मिली नहीं 
					कोई सुग्गा न कबूतर 
					गरमजोशी है लहजे में 
					मेरा यूँ जाना हुआ था 
					वफा याद आई 
					सजाना मत हमें 
					हवा खुशबू की 
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                  कहता है तू महबूब 
					 
					कहता है तू महबूब की सूरत खराब है 
					सच में तेरी कमजर्फ मोहब्बत खराब है। 
					 
					बेकारियों में घर की भी हालत खराब है 
					घर से भी सैकड़ों गुनी गुरबत खराब है। 
					 
					सुनकर के तल्ख लफ्ज इस दिल ने यही कहा 
					कैसी भी हो, किसी पे हुकूमत खराब है। 
					 
					भाई के प्यार की सजा, बहन से ज्यादती 
					वहशी तेरी बेरहम अदालत खराब है। 
					 
					उस गोद में बैठी हुई बच्ची को पता क्या 
					अंकल की उसे देखके नीयत खराब है। 
					 
					विश्वास के खंडहर में उगी घास है गवाह 
					पुरखों की इमारत की मरम्मत खराब है। 
					 
					बेटी भी दी, दौलत भी दी, सर भी झुका दिया 
					गाँवों की यही रस्मों-रवायत खराब है। 
					 
					१५ नवंबर २०१५ 
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