| अनुभूति में 
                  आलम खुर्शीद की रचनाएँ 
                  नई रचनाओं में-अपने पिछले सफ़र
 जब भी फसलों को
 सुलगती रेत पे
 
                  अंजुमन में-उठाए संग खड़े हैं
 जब खुली आँखें
 मानूस कुछ ज़रूर है
 याद करते हो मुझे
 सियाहियों को निगलता हुआ
   
  |  | याद करते हो 
                  मुझे 
             
     याद करते हो मुझे क्या दिन निकल जाने के बादइक सितारे ने ये पूछा रात ढल जाने के बाद
 
 मैं ज़मीं पर हूँ तो फिर क्यों देखता हूँ आसमान
 यह ख़याल आया मुझे अक्सर फिसल जाने के बाद
 
 एक ही मंज़िल पे जाते हैं यहाँ रस्ते तमाम
 भेद यह मुझ पर खुला रस्ता बदल जाने के बाद
 
 दोस्तों के साथ चलने में भी हैं खतरे हज़ार
 भूल जाता हूँ हमेशा मैं सँभल जाने के बाद
 
 फासला भी कुछ ज़रूरी है चिरागां करते वक्त
 तजुर्बा यह हाथ आया हाथ जल जाने के बाद
 
 वहशते-दिल को बियाबाँ से है इक निस्बत अजीब
 कोई घर लौटा नहीं घर से निकल जाने के बाद
 
 आग ही ने हम पे नाज़िल कर दिया कैसा अजाब
 कोई भी हैरां नहीं मंज़र बदल जाने के बाद
 
 अब हवा ने हुक्म जारी कर दिया बादल के नाम
 खूब बरसेगी घटाएँ शहर जल जाने के बाद
 
 तोड़ दो 'आलम' कमाँ या तुम कलम कर लो ये हाथ
 लौटकर आते नहीं हैं तीर चल जाने के बाद।
 
             
     २ 
                  जून २००८ |