| मानूस कुछ ज़रूर है मानूस कुछ ज़रूर है इस जलतरंग मेंएक लहर झूमती है मेरे अंग-अंग में
 खामोश बह रहा था ये दरिया अभी-अभीदेखा मुझे तो आ गई मौजे तरंग में
 वुसअत में आसमान भी लगता था कम मुझेपर ज़िंदगी गुज़र गई इक शहरे-तंग में
 किरदार क्या है मेरा- यही सोचता हूँ मैंमर्ज़ी नहीं है, फिर भी मैं शामिल हूँ जंग में
 शीशा मिज़ाज हूँ मैं, मगर ये भी खूब हैअपना सुराग ढूँढ़ता रहता हूँ संग में
 इक-दूसरे से टूट के मिलते तो हैं मगरमसरूफ़ सारे लोग हैं इक सर्द जंग में
 क्या फ़र्क है ये अहले-नज़र ही बताएँगेकुछ फ़र्क तो ज़रूर है फूलों के रंग में।
 
             
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                  जून २००८ |