| उठाए संग खड़े 
                  हैं उठाए संग खड़े हैं सभी समर के 
                  लिएदुआएँ खैर भी माँगे कोई शज़र के लिए
 हमेशा घर का अंधेरा डराने लगता 
                  हैमैं जब चिराग जलाता हूँ रहगुज़र के लिए
 ख़याल आता है मंज़िल के पास आते 
                  हीकि कूच करना है इक दूसरे सफ़र के लिए
 कतार बाँधे हुए, टकटकी लगाए हुएखड़े हैं आज भी कुछ लोग इक नज़र के लिए
 वहाँ भी अहले-हुनर सर झुकाए 
                  बैठे हैंजहाँ पे कद्र नहीं इक ज़रा हुनर के लिए
 तमाम रात कहाँ यों भी नींद आती 
                  हैमुझे तो सोना है इक ख़्वाबे-मुख्तसर के लिए
 हम अपने आगे पशीमान तो नहीं 
                  'आलम'हमें कुबूल है रुसवाई उम्र भर के लिए।
 
             
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                  जून २००८ |