| अपने पिछले 
                  सफ़र अपने पिछले हमसफ़र कि कोई तो 
                  पहचान रखकुछ नहीं तो मेज़ पर काँटों भरा गुलदान रख
 तपते रेगिस्तान का लम्बा सफ़र 
                  कट जाएगाअपनी आँखों में मगर छोटा-सा नाख्लिस्तान रख
 दोस्ती, नेकी, शराफत, आदमियत और 
                  वफ़ाअपनी छोटी नाव में इतना भी मत सामान रख
 सरकशी पे आ गई हैं मेरी लहरें ए 
                  खुदा!मैं समुन्दर हूँ मेरे सीने में भी चट्टान रख
 घर के बाहर की फिजा का कुछ तो 
                  अंदाज़ा लगेखोल कर सारे दरीचे और रौशनदान रख
 नंगे पाँव घास पर चलने में भी 
                  इक लुत्फ़ हैओस के कतरों से आलम खुद को मत अंजन रख
 ८ मार्च २०१० |