अनुभूति में
स्वयं दत्ता की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अनजान
अभी तो सिर्फ दीया जला है
चाह
निवेदन
रास्ते
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रास्ते
ये रास्ते
कितने सजीव होते हैं
लोगों के कदमों तले
इनके नसीब होते हैं
पा जाते है सब
इन पर चलकर मंज़िलें
सबका साथ देकर भी
ये रह जाते हैं अकेले
न कोई ठहराव
न कोई जमाव
दूर दूर तक इनकी
यादों का बिखराव
कोई मिलते हैं
कोई बिछड़ जाते हैं
न कोई इनसे मिलता
न ये बिछड़ पाते हैं
नहीं दिखता इस भीड़ में
कोई चेहरा कोई हाथ
दे सके जो इनका
दम कदम साथ
सोचता हूँ अक्सर
इन रास्तों पर चलकर
काश बन जाऊँ
मैं इनका हमसफर।
९ मई २००४ |