अनुभूति में
स्वयं दत्ता की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अनजान
अभी तो सिर्फ दीया जला है
चाह
निवेदन
रास्ते
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अभी तो
सिर्फ दीया जला है
अभी तो सिर्फ दीया जला है
सारी रात बाकी है
बाती जलेगी छाती जलेगी
सारा घर तो जलना है
कल तक तो साथ थे
पर आज अलग हुए हैं
परछाई अब बाकी है पर
यादों को भी जलना है
खतों फूलों और तसवीरों में
तो कुछ अंगार बाकी हैं
आँसू भी सौगात है और
चिता को भी तो जलना है
अभी तो मंज़िल ओझल है
और थके मेरे साथी है
तन थके है मन थके है
अब और नहीं चलना है
रिश्तों के नामों में केवल
'मैं' और 'तुम' का घेरा है
अभी तो सिर्फ 'स्वयम्' जला है
पर सभी को तो जलना है।
९ मई २००४ |