अनुभूति में
स्वयं दत्ता की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अनजान
अभी तो सिर्फ दीया जला है
चाह
निवेदन
रास्ते
|
|
निवेदन
कल कोहरा युक्त अस्पष्ट शाम
मैं तनहा अपने घर से चला
जहाँ मिले थे पहली बार
वह पगडंडी स्वागत करता मिला
वो सूखे पलाश
की मैं तलाश
थे तुमपर अर्पण
मेरा प्रथम निवेदन
वह बाग दिखा
जहाँ फूलों में
बिछे मेरे प्रेम और आँसू
खुशबू और ओस रूप में
नयन पोंछ आगे बढ़ा
हमसाया साथ छोड़ चला
साये को खोजते मैं
उस महामार्ग पर फिर चला
विस्तृत वृहत उन राहों पर
हमारे पदचिन्ह अंकित है
मेरे मुस्कानों कि गूँज हवा में
एक और निवेदन चित्रित है
खोजता चौराहे पर आ पहुँचा
मंथर हो चुकी मेरा चलन
हवा के झोंकों में पाया गूँजता
'अलविदा' मेरा अंतिम निवेदन
९ मई २००४ |