अनुभूति में सारिका कल्याण
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
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तितली अंगीठी जुगनू
तुम आना
निराधार
मीठी चवन्नी
सपने और यथार्थ
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सपने और यथार्थ
एक सपना मुझे अक्सर आता है
आँख खुलने पर,
यथार्थ में मेरा मन घबराता है
मेरी सपनों की दुनिया के लोग,
कुछ खास है . . .
वैसे नहीं है जैसे कि आज है
मेरे सपनो में,
रमज़ान में "राम"
और दिवाली में "अली"
दिखते हैं
उस दुनिया के लोगों के दिल
गुड की डली से हैं
मेरी दुनिया के लोग,
नफ़रत से जी चुराते हैं
सोने के हैं और
आग मे तप कर आते हैं
एक दिन,
खींच लाऊंगी मैं बाहर,
उन लोगों को
बिखेर दूंगी, बांट लूंगी सपनों को
तब हवाओं में खुशबुएं तैरेंगी
प्रेम के झूले डलेंगे
और ऋषियां पींग बढाएंगी
तब ईद पर गुलाल उडेगा
और हमीदा . . .होली दर सेवैयां बनाएगी
सचॐ उस दिन का सूरज कितना प्यारा होगा
सचॐ उस रात का चांद,
सूरज से ज़्यादा रोशनी देने वाला होगाॐ
९ जनवरी २००५
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