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अनुभूति में सारिका कल्याण की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
तब मीरा को राम मिलेंगे
तितली अंगीठी जुगनू
तुम आना
निराधार
मीठी चवन्नी
सपने और यथार्थ

 

निराधार

कल्पनाओं के क्षितिज पर,
तुम्हारी आकृति फिर उभरी है
वही सहमी चंचल काया लिए,
तुम बैठी हो विरह में,
मंै घूरता रहता हूँ तुम्हें एकटक
शायद किसी और हलचल के
इंतज़ार में परन्तु
ये इंतज़ार पिछले
कई सालों से चला आ रहा है
क्या सोचा करती हो तुम
गुमसुम मैं जान नही पाया
बस यही क्षण
मेरे जीवन का सुनहरा क्षण है
दीन दुनिया से बेखबर
मेरा – सिर्फ़ – मेरा
सोचता रहता हूँ,
घंटो बैठा, यों ही तनहाइयों में,
ढूंढ़ता फिरता हूँ तुम्हें,
छुपी सी परछाइयों में,
बातें करता हूँ तुमसे शून्य मे देखकर,
कि क्या सोचा करती होगी
तुम मुझे देखकर
क्या मैं भी तुम्हारी कल्पनाओं
का पात्र हूँ
क्या मैं भी तुम्हारी
तरह निराधार हूँ?

९ जनवरी २००५

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