अनुभूति में सारिका कल्याण
की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
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तितली अंगीठी जुगनू
तुम आना
निराधार
मीठी चवन्नी
सपने और यथार्थ
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मीठी चवन्नी
याद है मुझे
वो खट्टे दिन खट्टी–खट्टी सी रातें थीं
इमली, गोली, चूरन, सुपारी.
सब एक चवन्नी में आती थीं
फेंक देते थे, कॉपी–बस्ता,
पेड़ पर सरपट चढ़ जाते थे
घूमा करते इधर–उधर बस,
गलियों में धूल उड़ाते थे।
वो मेरे बचपन के दिन थे!
चांद सी चवन्नी के दिन थे!
भोले–भाले वो दिन थे सारे
.भोली–भाली सी बातें थीं
नानी की उस कहानी में मंै
राजा की राजकुमारी थी
चांद में बैठी बुढ़िया मुझको,
अपनी नानी सी लगती थी
दोनों की उम्र बराबर ही थी,
दोनों ही चरखा कातती थी ।
तब जब चवन्नी जेब में होती थी
हम अकड़–अकड़ कर चलते थे
सारे खोमचे, चाट, इमरती,
बारी–बारी चखते थे
सारी दुनिया दोस्त थी अपनी,
चवन्नी का दमखम ज़ोर पर था
मेला लगता हर दुकान पर,
हमसा कोई रईस न था।
वो मेरे बचपन के दिन थेॐ
चांद सी चवन्नी के दिन थे!
अब तो सब कुछ बदल गया है,
नई–नई सी बातें हैं
मतलब में ही दिन ढलता है,
मतलब में लदी रातें हैं
भोली भाली सी बातें खो गई,
अब भोलों को इंसाफ़ नहीं
बिन मतलब मुझे आज किसी पर
.चवन्नी भर विश्वास नहीं
चांद में बैठी बुढ़िया अब भी चरखा कातती है
मुझे देखती है, टुकुर–टुकुर जैसे सब कुछ जानती है
तब चवन्नी मीठी सी थी,
सपने मेरे सस्ते थे
आज चवन्नी मीठी सी है
सपनों में महंगाई भी है
पंख फैलाऊं
.किधर को जाऊं
पिंजरे में जगह बस इतनी सी है
ढूंढा, झाड़ा, खूब टटोला,
अब शाम हो गई है
तुम्हे मिले तो बताना
मेरी चवन्नी खो गई है।
९ जनवरी २००५
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