अनुभूति में राजेश
श्रीवास्तव की
रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
कविता बनाने की सनक
जीवन
हास्य व्यंग्य में—
जब उसने मुझे भइया कहा
संकलन में—
होली है–
होली
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जीवन
जीवन एक नाटक है
जिसे सभी को खेलना है
इसमें ना कोई अपना है ना पराया है
सभी को जाना है जो भी यहाँ आया है
मुझको ये आने जाने का खेल बहुत ही भाया है
लोगों को इसने तरसाया है भरमाया है लुभाया है
बहलाया है फुसलाया है ललचाया है भगाया है जगाया है
और न जाने क्या क्या करवाया है
शायद इसीलिए कहते हैं कि
ये जीवन मरन सब मोह माया है
पर कुछ लोगों को तो ये फूटी आँख भी नहीं सुहाया है
अधिकतर के तो समझ में ही नहीं आया है
शायद मैं भी नहीं समझ सका जीवन तुझे
तू ही आकर बता दे अपना रहस्य मुझे
क्यों हमें पढने को कहा जाता है
पढाई को ही अच्छा माना जाता है
क्या पढाई कर नौकरी पा जाना ही जीवन है
कब तक हम यूहीं कुछ लोगो के बहकावे में आकर बहेंगे
और एक अच्छी नौकरी पा उसे सँवरा जीवन कहेंगे
कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने जीवन बना लिया है
जिसने कुछ धन कमा लिया है
तो क्या जीवन धन ही अर्जित करना है
और यूँ ही संतुष्ट होकर मरना है
पता नहीं आखिर क्या है जीवन तू
ऐसे जाने कितने अनगिनत प्रश्न
मेरे किडनी में आते हैं क्यों?
१ सितंबर २००२ |