अनुभूति में राजेश
श्रीवास्तव की
रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
कविता बनाने की सनक
जीवन
हास्य व्यंग्य में—
जब उसने मुझे भइया कहा
संकलन में—
होली है–
होली
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जब उसने मुझे
भइया कहा
मैंने ना जाने कितने सपने बुने
सपने बुने फिर वे धुने
किन्तु दिल का इकलौता अरमाँ आसुओं में बहा
जब उसने मुझे देखते ही भइया कहा।
होटल में गया वेटर को बुलवाया
बिरयानी और न जाने क्या क्या मंगवाया
किन्तु मेरा दिल वहाँ भी रोता ही रहा
बिल चुकता करने के बाद
जब चिट पर लिख कर आया थैंक्यू भइया।
अन्त में मैंने पूछ ही लिया
कि आखिर हम आपके हैं कौन
थोड़ी देर तो छाया रहा मौन
किन्तु अगले ही क्षण
दिल ने अति तीव्र दर्द को सहा
जब जवाब में उस दीदी ने
एक बार फिर से मुझे भइया कहा।
१ सितंबर २००२ |