अनुभूति में रिपुदमन पचौरी की रचनाएँ
अब मुझको चलना होगा
अर्थ तुम्हारे ही अनुसार
होंगे. . .
क्या निशा कुछ ना कहोगी?
काव्य की परिभाषा से
अपरिचित्त रहा
कौन-सा
मैं गीत गाऊँ
बाँधो ना मुझको
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क्या निशा कुछ ना कहोगी?
आज प्रातः जब आँख खुली तो
अध सोया कुछ अध जागा-सा
मैं इक सपना देख रहा था
कुछ चिंतित्त, कुछ घबराया-सा
पुष्प खिले थे जिसमें सारे
वो फुलवारी अब टूट चुकी है
मित्र लदे थे जिसमें सारे
देखा इक गाड़ी छूट चुकी है
क्या इन सपनो का अर्थ निकालूँ
तुम ही क्या कुछ बता सकोगी?
पास है अब बस मौन मेरा,
क्या निशा कुछ ना कहोगी?
9
मई
2007
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