अब मुझको चलना होगा
बहुत हुआ विश्राम प्रिये अब, चल मुझको चलना होगा
इन सपनों के गोपन संचय को
यथार्थ बताते बहुत हुआ
कंज नयन में शशिप्रभा के बिंब निहारते बहुत हुआ
सुधा रस पाने को हूँ, और पथ परिचय पा जाने को, अब
प्राचि के निष्कलंक रवि पर नत-मस्तक करना होगा
बहुत हुआ विश्राम प्रिये अब चल मुझको चलना होगा
शशि सितारे नभ मंडल के,
कहो कहाँ कब रुकते हैं
कुछ पा जाने को अनिच्छा से अंधकार में चलते हैं
यदि निकले विषाद जल कण, तो भाल पौंछ फिर चलना
हमको बढ़ जाना, ले उर में ज्वाला, नहीं अभी है थकना
तिमिरपाश ये क्लांत हुआ तो मुक्त बंधन करना होगा
बहुत हुआ विश्राम प्रिये अब, चल मुझको चलना होगा
9
मई 2007
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